Nazm On Social Distancing

Ye Jo Samaji Duriyoon Ka Waqt Hai

ये जो समाजी दूरियों का वक्त है 
जैसे तसादुन है मेरे लिए 
अहमियत इसकी भी है 
ये हयात महफूज है इसी की बदौलत
पर यह दिल राज़ी नहीं
उसके लिए तो यह बस जफा है 
मिली है जो बिना तकशीर के उसे
कितना महदूद कर दिया है 
हमारी जिंदगी को इन दूरियों ने 
तड़पती है रूह मेरी क्या कहूं 
हुआ नहीं तिलिस्म यारों की लम्स का
अब तो लगता है जैसे सदियों से 
अजीयत के जुल्मत में
जैसे मसर्रत दिखाई नहीं देती
सुना है कि लोग कहते हैं 
अभी कई फरमान आने वाले हैं 
यह तो बस इब्तिदा है दूरियों का 
अभी वक्त बाकी है मुजहदा आने में 
तसल्ली दे दी है अपने भी मन को मैंने 
ठहरना है अभी कुछ दिन और दिल को 
आएगी फिर से खुर्शीद की किरने 
गुलिस्ता बन जाएगी यह दूरियां 
यह जो समाजी दूरियों का वक्त है 
यह भी गुजर जाएगा...



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